किसी ने बड़े ही तहजीब से मुझे महफिल में बुलाया था।
किसी ने बड़े ही तहजीब से मुझे महफिल में बुलाया था।
कोशिश तो बहुत की थी उसने ने न दिखाने की
लेकिन हाथ में उसने खंजर छुपाया था।।
मैं भी शिद्दत से गले मिला उससे, देखने के लिए की क्या होता है।
मैं लौट आया उसे गले मिलकर,
और वह , वहां बेसुध सा खड़ा रहता है।।
दुश्मनी अभी भी है हमारे बीच में उतनी ही बड़ी शिद्दत से
उसका जमीर उसके और मेरा जमीर मेरे साथ होता है।।