किसी ने कहा, पीड़ा को स्पर्श करना बंद कर पीड़ा कम जायेगी।
किसी ने कहा, पीड़ा को स्पर्श करना बंद कर पीड़ा कम जायेगी।
पर बता मुझे, यदि ये भी न रहे तो मेरे अस्त्तित्व को कौन दर्शाएगी?
इस खालीपन के अंधेरों से मुझे कौन बचाएगी,
और मेरी ख़ामोशी भरी चीखों को कौन सुन पाएगी?
ये हमराही तो मेरी राह में अवश्य लाएगी,
परन्तु अंतिम क्षणों तक साथ सिर्फ ये हीं निभाएगी।
तूफानों के बाद की तबाही पर ये मुस्कुराएगी,
और आँसुओं को ये मेरे आँखों की राह दिखाएगी।
कभी-कभी मेरी आत्मा को भी कुचल जाएगी,
और साँसों की डोर टूटती सी नज़र आएगी।
फिर एक ढलती शाम को इस एहसास से सजायेगी,
की यदि ये न हो तो प्रकृति तुम्हे कैसे छू पायेगी?
भावों में तुम्हारे ये गहराई ले कर आएगी,
और शब्दों को तुम्हारे जीवंत कर जाएगी।
अपने-परायों में विभेद करना सिखाएगी,
और हंसी में छुपी कुटिलताओं से वाकिफ भी कराएगी।
ये पीड़ा हीं तो है जो जीवन को नए आयामों तक पहुंचाएगी,
और आत्मा को परमात्मा के प्रकाश से चमकाएगी।