किसी दिन आकर
किसी दिन आकर
वो कह दे मुस्कुरा कर
“आज का सारा दिन, बस तुम्हारा !!”
ऊफ़्फ़्फ़्फ़
हर लफ़्ज़ पर झुका कर नज़र
यक़ीन कर लूँ
पहले से ज़्यादा
इतना ही नहीं
उन तमाम रातों के सूने ख्वाबों पर
आज एक रात की मोहर लगा दूँ
मैं तुम्हारे पहलू में रह कर ।