किसी तरह से उसने आसमान छुआ !
किसी तरह से उसने आसमान छुआ !
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इतने दिनों की उदासी अब ख़त्म हुई !
दिल से दिल की शुरू आज जश्न हुई !
छाया जो था अंधकार सा चारों तरफ़….
वो सारी की सारी जलकर अब भस्म हुई !!
कितने दिनों से इक तूफ़ान सा उठा था….
बस, वहीं पे आके इक प्राण जो टिका था !
हृदय की धड़कनें बहुत तेज़ हो गई थी….
आसमां छूने का उसने ठान जो चुका था !!
आसमां में उड़ने का हर प्रयास करता रहा !
चिड़ियों से हवा में उड़ने का तरीका सीखा !
पंख फड़फ़ड़ाकर कई बार गिर पड़ता था !
कोमल पंखों से रोज़ नई उड़ान भरता था !
आज उसने भी उसी पंखों से उड़ान भरा !
किसी भी तरह से उसने आसमान छुआ !!
आसमान छूकर तो वह बेहद खुश हुआ !
आसमान का माहौल उसे पसंद आ गया !
उसे मन कर रहा…. कि आसमान पे ही रहूॅं !
धरा पे स्थित घर की चिंता-फ़िक्र ही छोड़ दूॅं !!
आसमान में ही उसने अपना घर बना लिया !
चाॅंद-सितारों के संग चहलकदमी करने लगा !
दुनिया नई थी, हसीन ख़्वाबों में वो जीने लगा !
पूर्व घर को छोड़ रूमानी कल्पना में उड़ने लगा !
जो भी हो, आसमान उसे अपना सा लगने लगा !
कड़ी मश़क्कत के बाद उसने आसमान जो छुआ !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 02 अक्टूबर, 2021.
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