किसी के हो न पाये हम तुम्हारे आज भी क्यों हैं।
गजल- फ़िल से हासिल
काफ़िया- आरे की बंदिश
रद़ीफ- आज भी क्यों हैं।
बहर- बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222…..1222……1222……1222
किसी के हो न पाये हम तुम्हारे आज भी क्यों हैं।
अभी भी हम तुम्हारे ही सहारे आज भी क्यों हैं।
कि पहुँचा देश अपना चाँद पर ये बात गौरव की,
मगर लाचार सड़कों पर बेचारे आज भी क्यों है।
वो दिन अब आ गये जब खुद हमें खाना कमाना है,
मगर सरकार के ही हम सहारे आज भी क्यों हैं।
ये दरिया प्रेम का है पार जो उतरे वही डूबे,
मगर जो डर गये बैठे किनारे आज भी क्यों हैं।
नहीं भूले कभी वो दिन गुजारे साथ जो तेरे,
हँसी चंचल अदा के वो नजारे आज भी क्यों हैं।
मुझे मालूम तुम से हैं ये रोशन चाँद तारे सब,
तुम्हारे बिन नहीं रोशन सितारे आज भी क्यों हैं।
जो प्रेमी हैं बिना कुछ चाह सबको प्यार देते हैं,
न फिर कहना कभी सबके वो प्यारे आज भी क्यों हैं।
……✍️ प्रेमी