किसी के नहीं हम हैं लेकिन तुम्हारे
किसी के नहीं हम हैं लेकिन तुम्हारे
बताओ जिये किस तरह बिन तुम्हारे
तुम्हारे लिये वक़्त ठहरा हुआ है
हमारा नहीं कुछ ये पल-छिन तुम्हारे
तुम्हारे ही दम से ये शम्सो-क़मर हैं
तुम्हारी हैं रातें सभी दिन तुम्हारे
निशानी ख़तों की है मेरा सहारा
संभाले हुए ख़त ये अनगिन तुम्हारे
जिन्होंने डसा है मेरे दिल-जिगर को
लहरदार गेसू हैं नागिन तुम्हारे
मेरी हर ख़ुशी ढूँढती है तुम्हें ही
संजोता हूँ सपने भी तिन-तिन तुम्हारे
अभी दिल है नादाँ अभी शोखियाँ हैं
अभी नाज़-नखरे हैं कमसिन तुम्हारे
रक़ीबों से बचना उन्हें दूर रखना
लगा दें न शातिर कहीं पिन तुम्हारे
न ‘आनन्द’ ने की कभी बात झूटी
नहीं जी सकेंगे कभी बिन तुम्हारे
स्वरचित
डॉ आनन्द किशोर