किसी के कुछ जज़्बात
हम तुम मिले प्रणय के नए तराने गाकर,
मन को मिला विराम सहज सा साथी पाकर।
दिल हिमवत था लेकिन अब तो तरल हो गया,
तुझ संग रहकर जीवन कितना सरल हो गया ।
बीच समन्दर में परचम लहरा सकता हूँ।
तुम हो साथ मेरे हर मंजिल पा सकता हूं।
गीत ग़ज़ल के मानिन्द खुशी मिज़ाज़ हो तुम।
मेरे ख्यालों के माथे पर ताज हो तुम।
वीणा की झनकार प्रेम की मूर्ति प्रिय तुम।
धड़कन जुनूँ अंदाज अंत आगाज़ प्रिय तुम।
रहे सदा आबाद सात फेरों का बंधन,
कदम कदम तन मन करता जाए अभिनन्दन।
रहे हरित हम दोनों का यह प्रेम शज़र।
दुआ यही करतार किसी की न लगे नज़र।
भले रात दिन मौसम बन के बीत चलें,
लेकिन हम तुम बनकर प्रेम के गीत चलें।
किसी में होती चाह सितारे पाने की,
या फिर नीले नभ से चाँद चुराने की।
तुम्हीं हो मेरी चांद गगन व तारा हो तुम,
कुसुमित कोई गुलाब व गुलशन प्यारा हो तुम।
माघ माह की सतरंगी परिधान सी हो,
कठिनाई में संग चलती समाधान सी हो।
तुम हो मेरे साथ तभी जिंदगानी है।
दिल धड़कन सांसे वरना बेमानी है।
दीप में ज्यों बाती वैसे तुम हो अंकित,
प्रेम वीणा का तार कोई सुर में
झँकित।
तुम खुश हो तो लगता सब कुछ सही सजन।
किसी के कुछ जज्बात लफ़्ज़ में कही सृजन।
सतीश सृजन, लखनऊ