किसी का मन भर गया है खेलते खेलते
किसी का मन भर गया है खेलते खेलते
तंग आ गया आखिर मुझे झेलते झेलते
सोचा था बहुत लम्बा सफ़र होगा मेरा
मगर बहुत दूर आ गये टहलते टहलते
बदले के लिए,कर ली थी उनसे दुश्मनी
आखिर बच ही गया, बहकते बहकते
कोई भी निर्णय हुंकार से लेने न दिया
साँस फूलने लगा है लटकते लटकते
राही किसी का पीछा करता नहीं कभी
उनका भाव बढ़ गया मचलते मचलते
? रवि कुमार सैनी ‘राही’