किसी का बुरा नहीं चाहते कवि !
किसी का बुरा नहीं चाहते कवि !
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कभी भी किसी का बुरा नहीं चाहते कवि !
ना ही कभी धूमिल होने देते वे अपनी छवि!
उन्हें तो स्वच्छंद उड़ान की ही फ़िक्र होती….
मंद नहीं कर सकता कोई भी उनकी गति !!
इर्द-गिर्द की घटनाओं में ही वे कुछ ढूंढ़ते !
नज़रें उनकी चारों दिशाओं में ही हैं दौड़ते !
नज़रों में चुराकर घटना का सार वे ले लेते !
भला क्यों वे कभी किसी का कुछ बिगाड़ते !!
जो कोई कवि के बारे में ऐसा-वैसा हैं सोचते !
वे खुद के साथ साहित्य की उन्नति भी रोकते !
कवि की स्वच्छंद विचारधारा के इर्द-गिर्द ही….
साहित्य की निर्मल धाराऍं प्रवाहित होते रहते !!
कोई , कभी, क्यों ऐसी विकृत सोच हैं पालते !
विकृति मे वे तो खुद के ही जीवन को हैं हारते !
जो कोई , कभी किसी कवि को हैं ललकारते !
सचमुच, वे खुद के लिए ही साहित्य को मारते !!
साहित्य है साधना, सभी इस तथ्य को हैं जानते !
बढ़ने दें मान इसका, हर कोई ही साधक बनके !
किन्हीं छोटी-मोटी बातों पे इसकी गति ना रोकें !
मनगढ़ंत कहानी गढ़के किसी पे आक्षेप ना जड़ें !!
आप खुद भी जियें, औरों के लिए भी कुछ करें !
औरों के मनोबल को तो कदापि नीचा नहीं करें !
साहित्य की धाराओं की ख़िलाफ़त ना कभी करें !
स्वच्छ भावना के प्रवाह से साहित्य की सेवा करें !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 13 अक्टूबर, 2021.
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