किसी का जला मकान है।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
आज शहर में फिर से धुएं का उठा गुबार है।
शायद दंगें में फिर से किसी का जला मकान है।।1।।
बुत परस्ती में हम यकीं ना करते है काफिरों।
इबादत को हमारे दिल में बसा खुदा का नाम है।।2।।
जानें कब किससे धोखा मिल जाए पता ना।
यहां पे हर आस्तीन ए इंसा में पला इक सांप है।।3।।
कुछ राहत लेकर आई थी ये बारिश की बूंदें।
पर जमीं को कहां काफी ये आसमां का आब है।।4।।
जंजीर ए गुलामी को तोड़कर सर उठाया है।
कब तक जुल्म सहे आखिर वो भी तो इंसान है।।5।।
यूं मत मारो पत्थरों से इस पागल दीवाने को।
इसे खबर ना अपनी ये इश्क में हुआ बरबाद है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ