किसी ओर दिन फिर
किसी ओर दिन फिर
खियांबों की सदाएं महक जाएंगी।
दुनिया की नफरत..
मोहब्बत के गुलिस्तान में
दूर तक भटक जाएगी।
किसी ओर दिन अधरों पर मुस्कराहट
हिचकिचाहट में कुछ ओर फैल जाएगी।
लहू में,लालच में
जंग की आफत से
गुजरती ये दुनिया
ज़िंदगी की बाहों में
एक दिन फिर…
गिरफ्त हो जाएगी।