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15 Oct 2020 · 1 min read

किसी अजनबी सी डगर के

किसी अजनबी सी डगर के
मुसाफ़िर सभी हैं सफ़र के

इसी फ़िक्र में चल रहे हैं
कभी बात होगी ठहर के

निकलकर कभी आए आँसू
कभी दर्द आया उभर के

शबे-फ़िक्र गुज़री है तन्हा
वो हैं मुंतज़िर भी सहर के

सियासी मदारी हैं नेता
न हालात अच्छे नगर के

तज़ुर्बा मिला है उन्हे भी
बड़ी मुश्क़िलों से गुज़र के

अभी सर था पानी के अन्दर
मगर आ गये हैं उबर के

इधर भी उधर भी कहीं भी
रहे हैं न अब वो किधर के

उधर हाल ‘आनन्द’ ऐसा
जो हालात अब हैं इधर के

– डॉ आनन्द किशोर

2 Likes · 454 Views
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