किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
श्रावस्ती की एक थी नारी,
धन धान से थी संपन्न,
उसकी थी एक ही संतान।
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
संसारिक दुखो से थी अनजान,
मोह के बंधन से थी परेशान,
एक दिन घटना घटी उसके आंँगन।
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
मोह विरह पुत्र के दुःख में,
हुई गौतमी अचेतन मन में,
भटके इधर उधर सुत ले कर ।
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
प्राण ला दे मेरे प्रिय में,
सुन ये बोला कोई जन,
बुद्ध के पास जाओ सुत संग।
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
देंगे प्राण करेंगे जीवित,
सुन गौतमी पहुंँची बुद्ध के शरण,
कह दी अपनी व्यथा तुरंत।
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
बुद्ध ने जानी दशा मोह की पहचानी,
कहा ले आओ सरसों कुछ दाने,
जिस घर में न कोई मरा हो सदस्य।
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
बावली हो दर-दर भटकी हर घर,
मिला न कहीं ऐसा कोई गृह,
थक हार के लौटी साँझ बुद्ध के शरण।
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
दुःख है संसार में ज्ञान ही सत्य,
दिया गौतमी को उपदेश सफल,
बुद्ध की शरण में बनी भिक्षुणी।
किसा गौतमी बुद्ध अर्हन्त्,
गौतमी ने अपनाया बुद्ध सरण,
बुद्धम् शरणं गच्छामि,
धम्मम् शरणं गच्छामि,
संघम् शरणं गच्छामि ।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।