किसान
शुभ प्रभात सादर नमन
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ये लेख केवल एक लेख नहीं हैं क्योकि मैं खुद एक किसान के परिवार से हूँ ! ये हकीकत हैं हम जैसे बदनसीब किसानो की ——
” हूँ किसान मैं बदनसीब अश्को को अपने पीता हूँ ,
लाचारी बेबसी भाग्य की दुश्वारी में जीता हूँ ”
कृषि प्रधान देश भारतवर्ष में यदि अन्नदाता ही आत्महत्या करने को विवश है तो निश्चय ही यह इस देश के लिए शर्मनाक व् दुर्भाग्यपूर्ण बात है !
हम शायद यह बात भूल जाते है की हम कितने भी धन सम्पदा से परिपूर्ण हो जाये ,हमारी थाली स्टील .पीतल .सोने .या चांदी की हो सकती है, मगर रोटी तो आटे की ही होगी !
पूस की हाड कपां देने वाली रात हो या ,जेठ की तन झुलसा देने वाली गर्मी’ या ,सावन के जल मेघो द्वारा मानो धरती को प्रलयमान कर देने वाली वर्षा !
इन सब की परवाह किये बिना दिन रात कठिन परिश्रम करते हुए एक किसान हम सबके लिए अन्न उगाने का कार्य करता है !
आये दिन हम देख रहे है की हमारे अन्नदाता मौत का वरण करने पर मजबूर हो रहे है !
इसके लिए सरकार के साथ साथ हम सब जिम्मेदार है !किसानो के लिए सबसे बड़ी समस्या पैसे को लेकर होती है.जिसके लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ता है !और ज्यादातर किसान कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या को मजबूर हो जाते है !
अतः इसके लिए सरकार द्वारा ठोस व् प्रभावकारी कदम उठाये जाने चाहिए ! ताकि हम जैसे बदनसीब किसानों के जीवन मे भी खुशियों के कुछ आ सके !
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शिवानंद चौबे