“किसान”
रचनाकार- रेखा कापसे “होशंगाबाद”
दिन- मंगलवार
दिनाँक- 1/12/2020
विधा – कविता
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श्वेत लहु से अवनि को,
करता जो लहुलुहान है!
स्वेद कण से उपजाता,
अन्न वो कनक समान है!!
भोर पहर होता जागृत,
करे दिनकर का स्वागत!
जो चोला माटी का ओढ़े,
वो मेरा देशी किसान है!!
मेहनत उसकी तरकश,
हल हस्त की कमान है!
उदर अग्नि शीतल करे,
अन्न वो कनक समान है!!
बिन कृषक अन्नपूर्णा भी,
निहत्थी सी हो जाती है!
माँ भारती उसकी एक ,
सिसकी में खो जाती हैं!!
अंबर भी शीश नवाकर,
करता जिसका सम्मान है!
सकल विश्व का पालन ,
निर्वाहन करता किसान हैं!!
ये दुर्दशा जाने ना कोई ,
पीड़ा पहचाने ना कोई!
उन रिसती मेढ़ो से पूछों,
क्यों उसकी माने न कोई!!
बेबस हो जो गले लगाएं,
फंदा बना शमशान हैं!
कसक हिदय की पूछों,
क्यों खोता वो पहचान है!!
प्रातःकाल की चिड़िया भी,
करती उसका गुणगान हैं!
गोधूलि बेला रंभाती गौ ,
रज- रज गाए मधुर गान है!!
रेखा कापसे होशंगाबाद मप्र
रचना पूर्णतः मौलिक व स्वरचित हैं!