किसान
रूको, देखो वह
अंधेरे को चिरता
कौन आ रहा है?
देखो , खेतों के मेड़ पर
खड़ा वह
शून्य आँखों से निहारता
चुपके से,
खड़ी फसल को सहलाया है।
मंडराते बादलों को देख,
हाथ जोड़कर
विनयी भाव दिखाया है,
देखो,
भारत का अन्नदाता
खेतों में नंगे पांव आया है।
खेतों को अपनी हड्डियों से चिरता
फसलों को अपनी,
लहू से सींचता,
वह कौन आ रहा है ?
वह देखो,
ठूंठ पर बैठा गिद्ध
किसे निहार रहा है ?
भूखे पेट-
वह किसका पेट भरने को आतूर है ?
वह देखो एक मूस
बालियों को काटकर कहाँ ले जा रहा है ?
वह तोता,
कैसे बालियों को कुतर रहा है ?
वह राम की गिलहरी,
दानों को कैसे उदरस्थ कर रही है
बस,
विवश वह देख रहा है ।
वह देखो-
निहार रहा है
उस साहब को,
जो वातानुकूलित कक्षों में
उसके श्रम का
‘न्यूनतम मूल्य’ निर्धारित कर रहा है।
वह देख रहा है-
साहब बोनस का तड़का कब लगाएगा ?
वह देख रहा है-
साहूकारों को
और निर्दयी बैंक वालों को
जो उसके कर्ज का
हिसाब लेंगे
और अन्ततः
विवश कर देंगे उसे
खूंटी पर टंगने को ।