किसान
विषय.. किसान
दिनांक…19/04/2020
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रात के सन्नाटे से जो भय मुक्त है
दोपहरी में भी जो कर्म बंध है
सर्दी का भी चिरता जो हंसकर सीना
देवता नहीं है , ये भी हां इंसान हैं
हां यही तो किसान है ,अरे यही तो किसान है……….
बंजर धरती को फूलों से भरता
आंधी और तूफानों से जो है लडता
चीरके सीना धरती में बीज उगाता है
सबको रोटी, सब्जी और फल देता है
फिर भी रहता जो गुमनाम है
अरे यही तो किसान है………
सर्दी, गर्मी, वारिस से लड जाता है
धरती मां का पूत तभी कहलाता है
भूख, प्यास की जिसे परवाह नहीं
ये भी अपनी धुन का बडा फनकार है
अरे यही तो किसान है….।।
….. डॉ.नरेश कुमार “सागर”
हापुड़,उ.प्र.