किसान (रागनी)
क्यूकर मनाऊँ तीज पींग फांसी का फंदा दिखै सै
दब्या कर्ज तळै हार पेड़ पै किसान लटकता दिखै सै
बखते लिकडै काम की ख़ातर ठेठ खेत में पावैं सै
जब तक लिकड़ै सूरज बैरी वो आधा खेत नुलावैं सैं
खड़ा डोळे पै बाट रोटी की वो ठा ठा एडी देखै सै
सारा साल खटै खेत मैं वो आपणै हाड गलावै रै
इबकै दाणे चोखे होज्यां नयूं सोचै कर्ज चुकावै रै
जै ना बरस्या इबकै मीह तै माटी रेह रेह दिखै सै
सारी पूंजी ला दी फेर भी काम खेत का चाल्लै ना
मंडी मैं जब जावै जीरी पूरा दाम मिल्लै ना
जो उगावै उस्से कै घरनै माँ खाली चाकी पीसै सै
बेरा ना कद आवैगा वो बाट बखत की देखां साँ
होज्यां स्याणें भाई सारे चाल जगत की देखां साँ
नहीं किसे का गुलाम चोपड़ा सच्चाई नै लिखैे सै