किसान भूखा है।
किसी की चाहतें प्यासी, कोई अरमान भूखा है।
कहीं मजदूर भूखे हैं, कहीं किसआन भूखा है।।
जिसे हो देखना देखो, निगाहों से मेरी आकर।
सड़क फुटपाथ चौराहों पे हिंदुस्तान भूखा है।।
नहाते दूध में पत्थर, जड़ी सोने से दीवारें।
मगर है जो असल देखो, वही भगवान् भूखा है।।
जिन्हे आते सियासी गुर, वही बस मौज लेते अब।
न समझे जो सियासत को, वही नादान भूखा है।।
यहाँ शैतान भी खुश है, यहाँ हैवान भी है खुश।
वतन में आज मेरे है, तो बस इंसान भूखा है।।
हुये हालात हैं नाजुक, ये हिंदुस्तान है कहता ।
बुझे सब “दीप” हैं सच्चे, तथा ईमान भूखा है।।
प्रदीप कुमार.