किसान पर दोहे
किसान पर दोहे
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धरती पुत्र किसान का , मत करना अपमान।
जो करता सुरभित धरा,उपजाकर धन धान।।
कॄषक सभी दुख पीर में , आज रहे है टूट।
करते रहे बिचौलिए , इनसे निसदिन लूट।।
रत्ती भर जिनको नही,फसल उपज का ज्ञान।
वही गधे रचने लगे , अब तो कृषि विधान।।
आंदोलन के नाम पर , डटे कृषक दिन रात।
फुर्सत कब सरकार को,करे सुलह की बात।।
निज खेतों में रातदिन , करता है अवदान।
धरती का भगवान हैं, अपना पुज्य किसान।।
स्वेद बहाकर जो करें,मेहनत अमिट अनन्त।
हैं उसके सम्मान में , धरती और दिगन्त।।
कठिन परिश्रम से मिला,जितना उनको अन्न।
उसको ही करदान यह , रहते सदा प्रसन्न।।
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रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822