Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jul 2019 · 3 min read

किसान खेती बंद कर दे तो…?

इतना सोचने भर से रूह कांप उठती है कि किसान ने खेती बंद कर दी तो…? कहने का तात्पर्य यह है कि देश भर की राजनीति किसाना के आसपास घूमती नजर आती है. इसके बावजूद किसानों को वो सुविधाएं मुहैया नहीं हो पा रही हैं जिसके वे हकदार हैं. भोजन हमारी मूलभूत जरूरतों में से पहले नम्बर पर है. इसको उपजाने की जिम्मेदार अन्नदाता यानी किसान की है. आखिर किसान भी सामाजिक प्राणी हैं, उनकी भी जरूरतें हैं. देखा गया है कि तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने बच्चों को 2 लाख रुपये तक की मोटर साइकिल और इसी तरह का महंगा मोबाइल लेकर देने में एक बार भी नहीं कहते कि यह महंगा है. हैरत होती है कि वहीं लोग किसान हितों की बातों पर बहस करते नजर आते हैं. मेरा विचार तो यही है कि अब किसानों को सिर्फ अपने परिवार की जरूरत के लायक फसल करनी चाहिए.

माल्स में अंधाधुंध रकम खर्च करने वाले गेहूं की कीमत बढ़ने से डर जाते हैं. तीन सौ रुपये प्रति किलो के भाव से मल्टीप्लेक्स के इंटरवल में पॉपकॉर्न खरीदने वाले मक्का के भाव किसान को तीन रुपये प्रति किलो से अधिक न मिलने की वकालत कर चुके हैं. किसी ने एक बार भी यह नहीं कहा कि मैगी, पास्ता, कॉर्नफ्लैक्स के दाम बहुत ज्यादा हैं. सबको किसान का कर्ज दिख रहा है. महसूस हो रहा है कि कर्ज माफी की मांग करके किसान ने बहुत नाजायज बात की है. उत्तर प्रदेश में तो अधिकांश किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. कर्ज माफी की शर्तें ही ऐसी हैं कि उनको पूरा करना सबके बस की बात नहीं है.

महंगाई के आंकड़ों पर गौर जरूरी है
यह जानना जरूरी है कि एडवांस होने का मुखौटा पहनने वालों के दोगलेपन की वजह से ही किसान कर्ज में डूबा है. उसकी फसल का उसको वाजिब दाम इसलिए नहीं दिया जाता क्योंकि उससे खाद्यान्न महंगे हो जाएंगे. सन 1975 में सोने का दाम 500 रुपये प्रति 10 ग्राम और गेहूं का समर्थन मूल्य 100 रुपये था. अब 40 साल बाद गेहूं लगभग 1500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है. यानी सिर्फ 15 गुना बढ़ा और उसकी तुलना में सोना आज 33 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम है. मतलब 60 गुना की दर से महंगाई बढ़ी. इसके बावजूद किसान के लिए बढ़ोत्तरी को जबरदस्ती 15 गुना ही रखा गया ताकि खाद्यान्न महंगे न हो जाएं.

सन 1975 में एक सरकारी कर्मचारी को 400 रुपये वेतन मिलता था. उसको आज 60-65 हजार रुपये माहवार मिल रहे हैं. यानी 150 गुनी वृद्धि हुई है. इसके बाद भी सबको किसान से ही परेशानी है. किसानों को आंदोलन करने के बजाय खेती करना छोड़ देना चाहिए. सिर्फ अपने परिवार के लायक उपज करें और कुछ न करे. उसे एहसास ही नहीं कि उसे असल में आजादी के बाद से ही ठगा जा रहा है.

किसान उग्र क्यों?
जनता और सरकार को यह समझना होगा कि किसान हिंसक क्यों हो गया है? किसान अब मूर्ख बनने को तैयार नहीं है. बरसों तक किया जा रहा शोषण आखिरकार बगावत और हिंसा को ही जन्म देता है. आदिवासियों पर हुए अत्याचार ने नक्सल आंदोलन को जन्म दिया. अब किसान भी उसी रास्ते पर हैं. आप क्या चाहते हैं कि समर्थन मूल्य के झांसे में फंसे किसान के खून में सनी रोटियां अपनी इटालियन मार्बल की टॉप वाली डाइनिंग टेबल पर खाते रहें? बाद में जब सारा खेल किसान की समझ में आए तो वह विरोध भी न करे, आखिर क्यों?

किसान सुविधाओं में कटौती:
हमें मालूम होना चाहिए कि हमारे एक सांसद को साल भर में चार लाख रुपये की बिजली मुफ्त फूंकने का अधिकार है. साथ में हजारों रुपये का टेलिफोन भी इस्तेमाल कर सकते हैं, जबकि आज की तारीख में फोन और इंटरनेट 119-199 रुपये तक में तमाम प्लान मौजूद हैं. फिर भी किसान का 4,000 रुपये का बिजली का बिल माफ करने के नाम पर आप टीवी चैनल देखते हुए बहस करते हैं. यह चेत जाने का समय है. हमें भी कहना होगा कि 60-80 रुपये प्रति लीटर दूध और कम से कम 60 रुपये प्रति किलो गेहूं खरीदने के लिए हम तैयार हैं. कुछ कटौती हमें अपने ऐशो आराम में भी करनी चाहिए, वरना कल जब अन्न ही नहीं उपजेगा तो फिर हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों से उस कीमत पर खरीदेंगे जो वो तय करेंगी.
@ अरशद रसूल

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 488 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
Ajad Mandori
यूं ही कोई शायरी में
यूं ही कोई शायरी में
शिव प्रताप लोधी
धुन
धुन
Sangeeta Beniwal
होली
होली
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
परोपकार
परोपकार
ओंकार मिश्र
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
Annu Gurjar
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
सितमज़रीफ़ी
सितमज़रीफ़ी
Atul "Krishn"
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
ज़िंदगानी
ज़िंदगानी
Shyam Sundar Subramanian
दोहा बिषय- दिशा
दोहा बिषय- दिशा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
पोषित करते अर्थ से,
पोषित करते अर्थ से,
sushil sarna
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
पूर्वार्थ
"नजर से नजर और मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,
Neeraj kumar Soni
गजल सगीर
गजल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
हरवंश हृदय
बच्चे
बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राष्ट्र हित में मतदान
राष्ट्र हित में मतदान
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
Dr. Man Mohan Krishna
अगर प्रेम है
अगर प्रेम है
हिमांशु Kulshrestha
अनुभव 💐🙏🙏
अनुभव 💐🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
शेखर सिंह
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
#चिंतनीय
#चिंतनीय
*प्रणय*
"समरसता"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...