किसान के नाम एक खत
देशवासियों की थाली तक दो वक्त की रोटी पहंचाने वाले
ताउम्र तन पर कष्ट सहन कर चेहरे पर मुस्कान रखने वाले
किसान!
आपको बारम्बार प्रणाम, नमस्कार!
आज एक खत लिखने का मन हुआ आपके नाम। जानता हूँ मेरा खत आप तक पहुंच भी नहीं पाएगा शायद, क्योंकि ज़रूरत की सामग्री से भी वंचित रह जाते हैं आप, दिनभर मेहनत करने के बावजूद भी तो भला स्मार्टफोन आपके पास कैसे मौजूद हो सकता है। जिससे आप इस खत को अपनी आँखों के सामने पढ़ पाएंगे। पर फिर भी लिख रहा हूँ, जिस तरह ईश्वर दिखाई नहीं देते हैं फिर भी हम अपनी दुआएं उन तक पहुंचा पाने में सफल हो जाते हैं तो मैं भी ऐसा ही मानता हूँ कि आज जो भी लिख रहा हूँ आपके संदर्भ में शब्दों के माध्यम से वह आप तक ज़रूर पहुंच जाएगा। आप भी तो ईश्वर से तनिक भी कम नहीं हैं। या यूं कहूं कि आप भी ईश्वर ही हैं।
चाहे बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स हों, या गाँव, गल्ली-मुहल्ले की छोटी-छोटी दुकानें आपके हाथों से निर्मित सामान हर जगह मौजूद होती है। जिस ओर नज़र दौड़ाया जाए ऐसा लगता है कि हर जगह आपकी प्रतिभा की किरण बिखरी हुई है। आपके बिना हम सब अधूरे हैं, जिस तरह जल बिन मछली। हाँ, ऐसा इसलिए कहा मैंने कि जल के अभाव में मछली तड़प-तड़पकर मर जाती है। जल के बिना मछली की ज़िंदगी विरान है। ठीक उसी तरह यदि आप अन्न उगाना छोड़ देंगे तो शायद हम सब भी तड़प-तड़पकर परलोक सिधार जाएंगे इसमें भी किंचित संदेह नहीं।
ठंड के मौसम की ठंडी हवाएँ आपके मन को भी झकझोरने का पूर्ण प्रयत्न करती होगी जब आप डटे रहते होंगे ठंड के दिनों में खेतों में। पर आप हार नहीं मानते हैं। आपका मन भी टूट जाता होगा उस वक्त पर आप मजबूर होते हैं उस वक्त हालात के समक्ष। आर्थिक स्थिति लचर होने के कारण बेइंतहा कष्ट हर दिन देती है दस्तक आपके घर फिर भी मन में यह विश्वास रखना कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा, यह सीख कोई आपसे सीखे। जेठ की तपती धूप में तन तपाते हुए भी खेतों में काम करने में मग्न रहते हैं आप। तन पर बेइंतहा दर्द, दुख सहकर औरों की थाली तक रोटी, भोजन के अन्य सामान पहुंचाने का स्वर्णिम काम आपके सिवा कहाँ कोई करता है। आपकी शख्सियत को शब्दों में बांधना किसी कलमकार से संभव नहीं है। यह अकाट्य सत्य है।
आपका संपूर्ण जीवन विभिन्न धार्मिक स्थलों, देश-विदेशों में घूमने में व्यतीत नहीं होता है बल्कि आप अपना संपूर्ण जीवन गुजारते हैं खेतों में खलिहानों में ताकि घर का चूल्हा जल सके, मुन्ने की पढ़ाई हो सके, मुनिया की शादी अच्छे घर में हो सके व देश के हर नागरिक की थाली तक पेट की भूख मिटाने हेतु भोजन पहुंच सके। त्याग, तपस्या की साक्षात मूरत हैं आप। इसमें कोई संशय नहीं। आपके ऊपर मैं या कोई अन्य साहित्य सेवक भला क्या कुछ लिख सकता है यूं कहूं कि आप ही हमें गढ़ते हैं हमारा अस्तित्व आपसे ही हैं तो यह कहना शायद ग़लत नहीं होगा।
बारम्बार प्रणाम!!
आपकी धरती माँ का एक नन्हा-सा पुत्र
@कुमार संदीप