किसान की संवेदना
हूँ मैं एक किसान
लगा हुआ हूँ
खेती में,🌾🌾
सुखी रोटी खाता हूँ
अन्नदाता कहलाता हूँ
बंजर भूमि⛰🗻
उपजाऊ बना दूँ
ऐसी संवेदना रखता हूँ।
काया पड़ जाए
काली 🌚
अनाज फल उगाने में,🌾🥕🌽🍎🥦🍇🥒
तपती धूप में🌞
बदन से निकले
पसीने को वर्षा जल🌦
से नहाकर आया
ऐसा सोच कर
दिन-रात खेती में☀️🌙
लग जाता हूँ।
पग में पड़ जाते छाले👣🐾
नहीं खोता हूँ
हल् चलाने का साहस
सुंदर हरियाली सजाने में,🍃🍀🌿🎋🌴🪴
अन्न,धन के लिए🥜🥛🥗💰
पाल रहा हूँ
जीवों को,🐓🐄🦢🐏🐃🐂🐟🐬🦋🐝🐥
देश-विदेश की चर्चाओं में
स्वयं को हरपल पाता हूँ
जीविका साधन के लिए
नये-२ अविष्कारों से
खेती सरल बनाता हूँ,
पेड़-पौधों, फ़सलों के🌾🌾🌴🌳
विकास में दे रहा हूँ
अपना बलिदान।
हूँ मैं एक किसान
लगा हुआ हूँ
खेती में,🌾🌾🌾🌾
सुखी रोटी खाता हूँ
अन्नदाता कहलाता हूँ
बंजर भूमि🪨
उपजाऊ बना दूँ
ऐसी संवेदना रखता हूँ।।
स्वरचित एवं मौलिक- डॉ. वैशाली वर्मा(भूतपूर्व स्कॉलर बनस्थली विद्यापीठ)✍🏻😇