किसान का दर्द
कोई न समझे इस दुनियाँ में ,
जब दर्द किसी को होता है।॥1॥
दिनभर मेहनत करके भी ,
रात में भूखा सोना होता है॥2॥
रोटी के एक टुकड़े की खातिर ,
न जाने कितने सपने संजोता है ॥3॥
लेकिन जब रोटी न मिलती ,
वह अपनी किस्मत पर रोता है ॥4॥
अब कुछ भी पास नहीं है उसके ,
पल – पल वो सब कुछ खोता है ॥5॥
पेट भर सके हम सब का ,
इसलिए बीज वो बोता है ॥6॥
इतना सबकुछ करने पर भी ,
आखिर किसान क्यों रोता है ॥7॥
त्याग दिया सुख उसने सारा ,
और बिन बिस्तर वो सोता है ॥8॥
पैसे वालों के लिए आज भी ,
वो बस एक सिक्का खोटा है ॥9॥
स्वरचित काव्य रचना
तरुण सिंह पवार