किसान और हुक्मरान का घमासान !!
किसान अपनी व्यथा को समझाने है निकला,
हुक्मरानों ने बिना मांगे ही उन्हें ऐसा कुछ दे दिया,
जिसे स्वीकारना हमारे लिए असहज हो रहा!
बस इसी बात पर तो यह तकरार है,
इसी पर इनका अपना अपना विचार है,
और सरकार तो सरकार है!
सरकार ने जब देने का मन बना ही लिया,
तो किसान इसे किस हैसियत से है ठुकरा रहा,
हम तो हुक्मरान हैं, तुम हमें पहचानते नहीं,
तुम हो सिर्फ अदने से किसान यह जानते नहीं,!
हमें रखना है ख्याल अपने रहनुमाओं का भी,
तुमसे तो वास्ता नहीं है अभी,
संतुलन बना कर चलना पड़ता है कभी कभी,
मध्य का मार्ग पकड़े हुए हैं हम अभी !
कुछ तो तुम्हें झुकना ही पड़ेगा,
इस तरह से अडकर काम कैसे चलेगा,
इसी लिए तो अब तक तुम्हें मना रहे हैं,
शक्ति तु्म्हें अपनी नहीं दिखा रहे हैं,
विपक्ष ने है तुमको भरमाया हुआ,
गलत सा अर्थ इसका समझाया हुआ!
इनपे करके भरोसा तुम पछताओगे,
थक हार कर तुम हमारे पास ही आओगे,
इस लिए कह रहे हैं बात मान लो अभी,
रह गई है जो कमी उसे देख लेंगे बाद में कभी,
अभी तो इसे हमें लागू करना ही है,
हर अड़चनें हमें दूर करना ही है,
यह इकबाल है सरकार का जो हमें बचाना भी है,
मान भी जाओ अभी तक मनाया ही है,
हट जाओ यहां से,यह बताना ही है,
नहीं तो हटाएंगे हर हाल में, और हटाना ही है !!