किसान आंदोलन
कृषक ही देता अन्न सभी को,
खुद पर नही है उसे गुमान ।
अन्नदाता का मर्म न जाना,
फिर क्यों कहते जय किसान।।1।।
कड़ी धूप में खुद को तपाकर,
वह अन्न अमृत उपजाता है।
देता पोषण का दान तुम्ही को,
खुद सुखी रोटी वह खाता है।।2।।
अपना शोषण होने पर जब,
वह उग्र स्वरूप में आता है।
फल, सब्जी, दूध और अन्न,
सड़कों पर फेंका जाता है।।3।।
जिनको अपना ख़ून सींचकर,
जिन्हें जतन से बड़ा किया ।
स्वाभिमानवश परिस्थितियों नें,
उन्हें सड़क पर खड़ा किया।।4।।
‘तरुण’ विनय करता ईश्वर से,
बन्द करो यह अन्न संहार।
कृषको की मांगे हो पूरी,
कदम उठाओ अब सरकार।।5।।
स्वरचित कविता
तरुण सिंह पवार