किसानों की कोई नही सुनता
“भारत…. मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द जहाँ कही भी प्रयोग किया जाए बाकी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं , भारत के अर्थ किसी दुष्यंत से सम्बंधित नही वरन खेत मे दायर है ,जहाँ अन्न उगता है ।”
खैर विगत दिनों में हमारे देश और मोहल्लों ,गांवों ,कस्बो में कोहराम मचा हुआ है कि , किसान आंदोलन कर रहे हैं वो सरकार के विरुद्ध , मानो कुछ अजीब होने वाला है । आज कोरोना जैसी बीमारी की स्थिति ,
लॉकडाउन का ढुल मूल रवैया ,और बीच मे किसान आंदोलन ,यह 2020 क्या क्या करवाएगा । एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी , दूसरी तरफ लोगो को बेरोजगार कर दिया , तथा तीसरी तरफ किसानो का आंदोलन , बात कुछ समझ नही आ रही है कि देश की प्रथम श्रेणी कृषि क्षेत्र भी डगमगा रहा , क्या कुछ उथल पुथल होने की सम्भावना बन रही हैं । क्या सरकार निहत्थे किसानों को भी बेघर कर देगी , क्या क्या होगा और क्या होगया सब असमंजस हैं ।
हाल में पारित तात्कालिक सरकार के द्वारा तीन कृषि विधेयक जो किसानो के जीवन का जाल बना हुआ है , मानो उन्हें लगता है सब खत्म , जबकि सरकार की मंशा कुछ और करने की ।
“हम न रहेंगे ,तब भी तो यह खेत रहेंगे
इन खेतो पर घन घहराते शेष रहेंगे ,
जीवन देते प्यास बुझाते श्याम बदरिया के , लहराते केश रहंगे ।।””
भारत एक कृषि प्रधान देश है । कृषकों की भरमार है , ऐसा उनकी जोते बताती है , भारत का हर एक व्यक्ति कृषक हैं , आज कृषकों की स्थिति डमाडोल हैं ,और इसका कारण वो तीन कृषि विधेयक हैं ।
कई लोगों का मानना है कि , ये विधेयक ‘असंवैधानिक’ हैं , कइयों ने कहा कि केंद्र सरकार की निरकुंशता हैं ,कइयों ने कहा कि किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का समापन है , कइयों ने कहा कि फिर से जमीदारी व्यवस्था का आह्ववाहन है , किसी ने कहा कि पूरी तरह से देश की कृषि को नष्ट करने वाली नीति है , कई लोगो ने कहा कि ये पंजाब हरियाणा का मुद्दा है , कइयों लोगो का मानना है कि यह राजनीतिक मुद्दा है । लेकिन जहाँ तक उम्मीद हैं यह कानून कृषि के क्षेत्र में ‘सुधार’ को बढ़ावा देगी । क्योकि भारत की अधिकांश अर्थव्यवस्था कृषि क्षेत्र में सुधार ही आधरित हैं । सर्वविदित है कि , बड़ी सुधार कुछ उथल पुथल करवाती हैं , जैसे 1991 की औधोगिक सुधार कानून । खैर मामला पेचीदा नही है , यह सिर्फ गुमराह का मामला है ।
किसी कवि ने लिखा है कि ( आत्महत्या के सन्दर्भ में )
“” उन्हें धर्मगुरुओं ने बताया था प्रवचनों में , आत्महत्या करने वाला सीधे नरक में जाता है,तब भी उन्होंने आत्महत्या की क्या नरक से भी बदतर हो गयी थी उनकी खेती ।””
कृषि राज्य सूची का विषय है , और राज्य के अंतर्गत ही इसका विकास एवं वृद्धि की जाती हैं । प्रत्येक राज्य का कृषि के क्षेत्र में लगने वाला फीस , खर्च अलग अलग है । परंतु 1955 में नेहरू ने सविधान में एक संसोधन किया कि , यदि राज्य अपनी शक्तियों के माध्यम से कृषकों की उत्पादन , और भूमि , तथा लगने वाला खर्च तय करेंगे तो , भूमिहीनों को कृषि से हाथ धोना पड़ेगा , इसलिए उन्होनो ने “”APMC” नामक एक एक्ट पारित किया कि , कृषक अपने उत्पाद को अपने नजदीक किसी मंडी में बेच सकते हैं , और अपना जीवननिर्वाह भी कर सकते है ।
परन्तु 1965और 1966 की दशक में आये अकाल ने कृषकों की कमर ही तोड़ दी क्योकि उनके पास न तो उत्पादन के खर्च थे ,न ही पेट भर खाने के भोजन । उसी दशक में भारत दो बड़ी युद्ध लड़ चुका था ,एक पाकिस्तान से ,दूसरा चीन से ,जिससे उसकी सारी रसद खत्म हो चुकी थी ।
1966 की दशक में भारत मे हरित क्रांति आई जिसने केवल पंजाब और हरियाणा के क्षेत्रों को ही प्रभावित किया ,जबकि भारत के अन्य राज्य उतना अच्छा प्रदर्शन न कर पाए , जिससे एक तरफ आनजो की भरमार और दूसरी तरफ कुपोषण तथा भूख से बिलखता भारत था । वही हरित क्रांति की दुष्परिणामों ने भी पंजाब तथा हरियाणा को छोड़ बाकी राज्य को काफी नुकसान पहुँचाया ।
खैर हरित क्रांति भारत मे लाने का मुख्य मुद्दा अनाजों के मामलों में भारत को आत्मनिर्भर बनाना था ।
1980 के दशक में कृषको के फसलों को एक सहूलियत भरा मूल्य देने के लिए सरकार ने एक अधिसूचना जारी की ,जिसके तहत किसानों को उनकी फसल का एक सहूलियत भरा रकम मिलेगा ,जिसे ही “MSP(न्यूनतम समर्थन मूल्य)” कहाँ गया । और इसमें सिर्फ दो फसल ‘गेंहू तथा चावल’ ही खरीदने की बात कही गयी , जो आज भी विद्यमान है । अर्थात वर्तमान न्यूनतम समर्थन मूल्य में शामिल ’23 फसलों ‘में केवल सरकार गेंहू तथा चावल को ही खरीदती हैं ,जबकि अन्य मोटे अनाज को नही , इन्हें तो फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया में(FCI) खरीदती हैं और संग्रहन करती हैं ।
वही दूसरी तरफ हो रहे आंदोलन में पंजाब तथा हरियाणा के कृषको का अधिक से अधिक भागीदारी “MSP” को लेकर है क्योकि पंजाब और हरियाणा के किसानों का चावल तथा गेंहू में msp का अनुपात 80% तथा 70% हैं , जो उनकी पूरी आय को बताती हैं कि ,पूरी तरह यह इसी पर निर्भर है , जबकि वही दूसरी तरफ पूरा भारत चावल तथा गेंहू में केवल 35% और 40% ही योगदान देता है । अर्थात पंजाब और हरियाणा के कृषको के कारण ही , भारत के अन्य राज्य का भरण पोषण चल रहा है ।
खैर आज जगह जगह पर ” MSP” की बात हो रही , लोग परेशान भी ,क्या वास्तव में न्यूनतम समर्थन मूल्य समाप्त होजायेगा , क्या किसानों के आंदोलन और भी भयावह हो जाएंगे , क्यो सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नही करती , क्यो नही बता देती की कौन सी तकनीक का उपयोग करती हैं , क्या सरकार भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंधकार में रख रही है । तमाम सवाल मन मे उतपन्न होते है ।
केदारनाथ की एक कविता याद आ जाती हैं –
“मैं उसे बरसो से जानता था,एक अधेड़ किसान थोड़ा थका हुआ ,थोड़ा झुका हुआ ,किसी बोझ से नही सिर्फ धरती के उस सहज गुरुत्वाकर्षण से ,जिसे वह इतना प्यार करता था ।”
ख़ैर न्यूनतम समर्थन मूल्य हेतु स्वामीनाथन कमेटी तीन सिद्धान्तों का पालन किया जाता है ,परन्तु वर्तमान में उसका पालन नही होता , यद्यपि यह प्रावधान निम्न है –
(1)- A2- किसानों द्वारा अपने खेतों में लगाये जाने वाला खर्च जैसे बीज ,उर्वरक, पानी खर्च इत्यादि
(2)- A2 + Family labour – किसानों के साथ कार्य करने वाले उनके परिवार जन का खर्च , उस भूमि पर किया जाने वाला उत्पादन खर्च , उत्पादन पूजी इत्यादि ।
(3)- c2=A2 +A2 + family labour .
सर्वविदित है कि स्वामीनाथन के द्वारा किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य c2 पर ही निकाला जाता था ,जो c2 का 1.5 गुना हैं ,परन्तु आज हमे किस पर मिलता है इसका कोई जिक्र नही ।
वही दूसरी तरफ वर्तमान में पारित कृषि विधेयक को कई लोगो ने असंवैधानिक कहाँ है ।
ध्यातव्य है कि लोकतंत्र देश मे कानून को नियंत्रित करने हेतु एक सविंधान हैं ,सविधान के माध्यम से ही केंद्र व राज्य के कानूनों का विभाजन किया गया ,ताकि किसी भी प्रकार का एक दूसरे में टकराहट की संभावना न बने । फिर भी कुछ ऐसे विषय है जिन पर राज्य और केंद्र दोनों कानून बनाते हैं ।
जबकि कृषि राज्य सरकार का विषय है जिसपर कानून बनाने का अधिकार राज्य की विधयिका का है । गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र कहने का तात्पर्य है कि कृषि से सम्बंधित वो सभी क्षेत्र जैसे जुताई,कटाई,बोआई, ख़रीद ,बेचना, डेयरी ,फल सब्जी , फूल इत्यादि ।
खैर राज्य सूची के क्रमांक नंबर 14 ,26 और 27 में राज्य सरकार को कृषि क्षेत्र से सम्बंधित टैक्स, खर्च, इत्यादि जैसे प्रवधान लिखित है , जबकि यह कानून तभी कार्य करता है जब केंद्र सरकार द्वारा पारित समवर्ती सूची के धार 33 के तहत के लिखित हो कि कृषि के क्षेत्र में कानून राज्य बनाये , अन्यथा केंद्र का भी इस पर अधिकार रहेगा ।
अतः यह कानून सविधान के परपंरागत संसोधन के नियमो का पालन करता है इसलिये यह कानून सवैधानिक हैं ।
निष्कर्ष रूप में यह कह सकते है कि , कृषि के क्षेत्र में विधमान असंगतियों को दूर करने हेतु यह एक महत्वपूर्ण कदम है ,गौरतलब है कि सिक्को के दो पहलू होते है ,अर्थात कानून में कुछ अच्छे बात ,है और कुछ कमियां भी है ,जिनका निराकरण सरकार को समयानुसार करना चाहिए ।