किसलिए
किसलिए..
भूल कर रास्ता हर सफर किसलिए
चाँद उगने लगा अब इधर किसलिए
आँख सुलगी ये शामो-सहर किसलिए
झील में आग फैली मगर किसलिए
गर्द दिल पर जमी है मेरे गर इधर
साँस उनकी रूकी है उधर किसलिए
मैं भले ना जताऊँ समझती तो हूँ,
व्यंग्य तेरा बदलता नज़र किसलिए
मुल्क पर है शराफत का चोला चढ़ा
आग भड़की जले फिर नगर किसलिए
ज़िन्दगी कीमती है लिखा तो गया,
चंद सिक्को में बिकती उमर किसलिए
इसको ऐसे करो जैसे मैंने किया
प्यार करते हो तुम सोचकर किसलिए
साथ मैं थी अगर तुम तो सोए रहे
जागते हो अभी रातभर किसलिए
रंग बदलेगी दुनिया मुझे था पता,
श्वेत अपना लहू है ‘लहर’ किसलिए
रश्मि संजय श्रीवास्तव
(रश्मि लहर)
लखनऊ