किसको है तुम्हारी परवाह
स्वैच्छा, स्वाभिमान, स्वकर्तव्य ,
निहित है तुझ पर तेरा ही मंतव्य।
कदम विश्वास का रख चलो पथ पर,
किसको है परवाह किसके गंतव्य।
उदित हो जाती है चिंताएं होते ही भोर,
क्या तुम्हारा है जिसका मचाते हो शोर ।
अस्त हो जाती है इच्छाएं सूरज ढलते ।
सोती है आशा निराशा का चादर ओढ़ ।
एकांत में हृदय को करके सुकोमल,
कौतूहल मन बैठो प्रकृति के सानिध्य।
महरुम हो जाते मारुत आते ही ग्रीष्म,
तरु जिसका करते है शरद में आतिथ्य।
वेदना से पलकर जिसने भी खड़ा हुआ,
मुसीबतों में मिला पहाड़ों सा अड़ा हुआ।
कहने वाले कहते हैं देखने वाले देखते है,
मिलते सभी सफलता में साथ खड़ा हुआ।