किसके सामने
ये किस के सामने हम अर्ज़-ए-हाल कर बैठे
सवाब-ए-इश्क़ से जीना मुहाल कर बैठे।
हम इस लिए तिरे पहलू में बैठते ही नहीं
के तू कहीं न सवाल-ए-विसाल कर बैठे ।
डरा हुआ है समुंदर ये अपनी लहरों से
हुरूफ़-ए-दर्द कहीं ना बबाल कर बैठे।
मिरे वजूद पे क़ाबिज़ हुआ क्यूँ पल भर में
हमारे दिल को क्यूँ तुम पाएमाल कर बैठे।
झलक रही है सताइश गज़ाल ‘नीलम’ सी
कि साँस साँस तरन्नुम ख़याल कर बैठे।
नीलम शर्मा ✍️
सवाल-ए-विसाल- मिलन निवेदन
हुरूफ़-ए-दर्द- व्यथा टीस
क़ाबिज़-कब्ज़ा
पाएमाल-पददलित
सताइश-प्रशंसा
गज़ाल-संगीत