किसके भरोसे ?
“किसके भरोसे”
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छोड़ गई हो !
किसके भरोसे ?
हे ! दीपशिखा तू !
मीत को |
तेरा जाना !
रास ना आया !
मेरे हृदय की
प्रीत को |
धड़कन हो गई
सूनी-सूनी
तू छेड़ गई
विरह-गीत को |
विरह-वेदना
दोनों मिलकर
सता रही हैं !
“दीप” को ||
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– डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”