किसकी पीर सुने ? (नवगीत)
किससे
अपना दर्द
कहें हम,
किसकी पीर सुनें ?
जैसा मैं हूँ
वैसा तू है
ऐंसे ही हैं
हम सब ।
जितना मैं हूँ
उतना तू है
इतने ही हैं
हम सब ।
एक है
डफली
एक राग है
एक-सी रामधुनें ।
मेरे घर में
चाय नहीं है
तेरे घर में
शक्कर ।
उसके घर में
तेल नहीं है
दर्द यही है
घर-घर ।
किल्लत
क्या है
क्या है दिक्कत
कैसे इसे चुनें ?
पंचर है
मेरा स्कूटर
तेरी कार
रिसानी ।
उसकी वाइक
का रिंग टेढ़ा
सबको है
हैरानी ।
जिल्लत की
खटिया
पर लेटी,
इज़्ज़त स्वप्न बुने ।
किससे
अपना दर्द
कहें हम
किसकी पीर सुनें ?
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।