किसका कन्धा पकड़े जाकर हम
अंकित हो या पंकज क्यों हमारें देश में आजाद नहीं
क्यों हिंदुस्तानी धर्म की सुनती सरकारे फरियाद नहीं
कब तक अपने चमन में कैद बनकर हम रहेन्गे यारों
क्यों मुस्लिमों के किये सितम रहते हमकों याद नहीं
कब तक महजबीं अंधों की बात सुनतें रहेंगे यहाँ पर
धर्म की आड़ में इनके जुनूनी ज़ुल्म की मियाद नहीं
किसका कन्धा पकड़े किसको जाकर के रोये हम
अंधी गूंगी बहरी बन बैठी सरकार की कोई दाद नहीं
कश्मीर खोया कैराना रोया अब कासगंज बुलाता है
जो शाहिद हो गए है क्या वो किसी की औलाद नहीं
अशोक कब तक हमदर्दी दिखा ज़ख्मों को ढोता रहेगा
मुर्गा ए चमन बन बैठा ये हिन्द कही हो रहा बरबाद नहीं
अशोक सपड़ा हमदर्द की क़लम से दिल्ली से