किरीट सवैया (शान्त रस)
रस का नाम :- शान्त रस
विधा:- किरीट सवैया = भगण X 8
यानि, भगण भगण भगण भगण भगण भगण भगण भगण अर्थात 24 वर्ण का एक पद
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रचना
( ०१ )
भोर उठे जब मोर मना नित, ढूंढ रहा प्रभु द्वारन द्वारन।
जो हिय पाय गया खुद में हरि, है लगता धन सदा बुहारन।
बारह मास रमा हरि में मन, काज यही बस भाग्य सुधारन।
त्याग निकेतन नेह लगाकर, जा बसता नर दुस्कर कानन।।
( ०२ )
मोह करे उर त्याग कभी नर, जीवन है बनता यह पावन।
प्रेम भरा मन स्वच्छ सदा तन, है लगता हर मौसम सावन।
जो मिलता सुख शान्त रहे मन, ईश कृपा से सब मनभावन।
सुंदर हो तन मोह भरा मन, राम बिना वह होत भयावन।।
( ०३ )
मोह धरे कछु लोभ धरे कछु, पीट रहे है पेट थपा -थप।
खोज रहे कछु सोध रहे कछु, मीच रहे हैं आँख झपा – झप।
लूट खसोट समेट रहे कछु, खींच रहे है माल सपा – सप।
मोह महान भरे हिय में कछु,जोह रहे धन रोज टपा – टप।।
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#घोषणा :- मेरी यह रचना स्वरचित है।
(पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’)