किरायेदार
किसी किरायेदार की तरह
आया वो मेरे दिल मे
हकदार बन बैठा दिल का
बिना किसी ही लिखत पढ़त
अकेला आया था वो मगर
ऐसा लगा जैसे हम साय है वो
ना कह न पाई उसे मै
सौंप दी दिल की चाबी फौरन
जब समझने लगे उसे अपना
वो कुछ हिचकिचाने लगा
आंख मिचौली के इस खेल मे
हार गए हम दिल अपना
चला गया फिर वो एक दिन
बिना कुछ कहे सुने
कर गया खाली दिल मेरा
दे गया यादें ,छोड़ गया तन्हा
केशी गुप्ता
लेखिका समाज सेविका
द्वारका दिल्ली