किरकिरी
श्वेत मतंग के रक्षक दल में,
चीतों की भरमार है ।
खाकी चमड़ी धारी शेरों का,
गायें बनी शिकार है ।।
स्वर ऊंचा अलाप रहे सब,
भद्र जीवों को देखकर ।
कर्कश स्वर के आगे भैया,
कोयल की भी हार है ।।
टट्टू खच्चर रेश में आगे,
टापों से पथ काँप रहा ।
सफेद घोड़ा कैसे दौड़े,
पगबंधन से लाचार है ।।
बदली, सूरज पर हावी है,
धूप डरी है छाँव से ।
बाहर घर से जाकर देखो,
रवि पर धूंध सवार है ।।
सरिता जल मैला हुआ,
पापों के गट्ठर धोने से।
माँ गंगा को कहाँ बहाएं,
भगीरथ भी लाचार हैं।
पट्टी बंधी न्याय चक्षु पर,
प्रतिमा प्रतिदर्श खड़ी।
सच बिक रहा सरेआम,
काले कोटो का बाजार है।
कीमत सूखे मेवे की बढ़ती,
चटके पिस्ते जस अर्धनग्न,
साड़ी,नारी को देख के तरसे,
लघु वस्त्रों का व्यापार है।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.