किया है यूँ तो ज़माने ने एहतिराज़ बहुत
किया है यूँ तो ज़माने ने एहतिराज़ बहुत
मगर हमें है मुहब्बत पे अपनी नाज़ बहुत
ख़ुदा करे कोई सज्दा, क़बूल हो जाये
पढ़ी है हमने ख़ुदा की क़सम नमाज़ बहुत
किसे कि आपकी सूरत पे एतमाद न हो
अदाएं आपकी होती हैं दिलगुदाज़ बहुत
मरीज़े इश्क़ रहे ख़ुद तमाम उम्र मगर
दिया है हमने ज़माने को चारासाज़ बहुत
बदल दिया है बहारों ने गुलसिताँ का मिज़ाज
गुलों के रंग में बू में है इम्तियाज़ बहुत
हमारी मौत ने आकर फ़क़त किया अहसान
वगरना दिल पे गेरां थी शबे- दराज़ बहुत
ज़माना इस लिए आसी फ़िदा हुआ उस पर
वो ख़ुद पसन्द है लेकिन है जाँ नवाज़ बहुत
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सरफ़राज़ अहमद आसी