किया पोषित जिन्होंने, प्रेम का वरदान देकर,
किया पोषित जिन्होंने, प्रेम का वरदान देकर,
वही अब मारने को युद्ध में तैयार होंगे।
कपटता से किया निर्मित लहू का खेल कुछ ने
मगर अब ग्रस्त उससे नित हजारों लाल होंगे
लड़ेंगे भाई से भाई, सभी बंधन भुलाकर,
समरभूमि सजेगी काल भी विकराल होगा,
लड़ेंगे वीर भी कर्तव्य लेकर वीरता से
किसी तलवार के सम्मुख किसी का भाल होगा
बहुत विकराल है संकट अभी पावन धरा पे
हजारों प्रश्न के आगे कोई भी हल नहीं है,
लड़ेंगे वीर निर्भयता से संग में काल लेकर
मगर मृत्यु पराजित कर सके वो बल नहीं है
किसी के शीश पर जय का मुकुट होगा परंतु,
किसी माता के मुख से शौक की चीत्कार होगी
किसी नयनों में होगा तेज उन पावन क्षणों को
किसी नयनों में बहते अश्रुओं की धार होगी
वही भूमि कभी बिन नीर के सुखी पड़ी थी
मगर अब उस धरा पर, रक्त की नदिया बहेगी
अमर पृष्ठों पे अंकित उस समय का नाम होगा
युगों तक युद्ध के परिणाम को सदियां कहेगी
अगर विचलित हुए संग्राम को तुम देखकर तो,
अटल जीत से पहले, तुम्हारी हार होगी
बहुत संकट खडे है, राह में कांटे बहुत है
लड़े निर्भय तुम्हारी, विश्व में जयकार होगी