— किधर जाऊं —
तुझे रब कहूँ
या खुदा कहूँ
कैसे करूँ
तेरी इबादत
जर्र्रे जर्रे में समाया
है तेरा ही रूप
तुझको किस नाम
से मैं पुकारा करूँ
दुनिया में आयी
बाढ़ कितने बाबाओं की
समझ नही आता
किसी ओर मैं चलूँ
जिस को देखो
सब कहते नाम जपो
पर नाम के आगे
औ कलियुग के
बाबाओं का दीदार करूँ
कैसे करूँ ,
यह रास्ता दिखा , जिसमे
तुझे दिन रैन मिलूँ
तेरी लीला से बढ़कर
कोई लीला नही जग में
क्यूं न तेरे रूप
मैं खुद को गुलज़ार करूँ
नही समझ आती
इन कलियुग के
बाबाओं की चाल मुझे
जरा एक बार
सपने में आ जा मेरा रब
मैं बस खुल कर
तेरा दीदार करूँ
बस तेरा ही दीदार करूँ !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ