किताब
आज मैं मिलूंगा
एक बार फिर स्वयं से
कभी हरी घास पर
कभी बादलों में
कभी मखमली बिस्तर की
झीनी चादर पर
पैर पसारकर उन्मुक्त
उच्छृंखल पूर्ववत
हाथों के मध्य
शब्द गहरे होंगे
प्रिय तुम
संग होगी मेरे
झीने आवरण में बंधी
किताब तुम
मनोज शर्मा
आज मैं मिलूंगा
एक बार फिर स्वयं से
कभी हरी घास पर
कभी बादलों में
कभी मखमली बिस्तर की
झीनी चादर पर
पैर पसारकर उन्मुक्त
उच्छृंखल पूर्ववत
हाथों के मध्य
शब्द गहरे होंगे
प्रिय तुम
संग होगी मेरे
झीने आवरण में बंधी
किताब तुम
मनोज शर्मा