किताब
जाने पढ़कर आयें हैं आज वो कौन किताब,
उनके हर जवाब पर हो रहे हैं हम लाजवाब,
ख़ामोशी से चले गए, तिरछी निगाह से देखकर,
खुदा जाने अब क्या सितम, हम पर करें जनाब,
मुहब्बतों का मौसम शायद उन्हें रास ना आया,
तभी तो वो हमसे नफ़रत करने को हैं बेताब,
माथे पर त्योरियां डाले जो देखा उसने एक बार,
हाय क्या बताएं ! क्यों आया हमें प्यार बेहिसाब,
“दक्ष” गौर से करो अपने अलफ़ाज़ का इंतिखाब,
हो ना जाए उनकी शान में गुस्ताखी ज़ेर-ए-इताब,
विकास शर्मा “दक्ष”
ज़ेर-ए-इताब = rage of fury