किताब
पढि लऽ लिखल किताब में, नैन हृदय के द्वार।
जे अँखिया ना पढि सकल, पोथि पढ़ल बेकार।।
जे चाहे आ के पढ़ो, हिरदय खुलल किताब।
लिखनी हम महबूब के, हर्फ हर्फ महताब।।
सम्मुख सबकी बा खुलल, हमरो आज किताब।
पन्ना-पन्ना देख लीं, सूखल मिलल गुलाब।।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य