किताब
ए ज़िन्दगी तेरी किताब के सफे
कुछ लिखे थे तो कुछ रह गए कोरे
लिखे हुए समझ में न आये हमारी
और जो कोरे थे वो तो थे ही कोरे
सारी जिंदगी इसी उलझन में रहे
पढ़ लेते तो शायद समझ भी लेते
कोरे पन्नो पे तजुर्बा लिखना था हमे
और हम खुद ही को रहे उलाहना देते
उलझनों के इन्ही ताने बाने में
ज़िन्दगी का सफर पूरा हो गया
किताब के पन्ने फड़फड़ाने लगे
फटा एक पन्ना जाने कहाँ खो गया
वीर कुमार जैन
14 अगस्त 2021