किताब का वो पन्ना
…वो उस पार थी और मैं इस ओर से उसे देख रहा था। मैंने जैसे ही उत्सुक्तावश उसे अपने हाथों में लेना चाहा वो एक ओर लुढ़क गयी।उसे गिरता देख मेरी आंखे मुस्कुराती रही मैंने क्षण भर उसे अपने हाथों में थामा और उसका प्रथम पृष्ट पलटा..।यह वही किताब थी जिसे उस रोज़ मैंने उस अजनबी के हाथों में देखा था..।
मनोज शर्मा