【{【{किताबों किस्सों से नही बयां होती}】}】
((((किताबों किस्सों से नही बयां होती))))
किताबों किस्सों से नही बयां होती न ही बताने से होती है वो सुपर,औरत ही इंसान की जड़ है वही है सबसे ऊपर.
मुश्किलों से भरा है इसका जीवन,न जाने कितनी ठोकरे,कितनी बंदिशे सहती है ये उम्र भर,
जब्र जुल्म की शिकार होती है, शैतानों से लूटमार होती है,कभी तेज़ाब से है नहलाई जाती,कभी दहेज में है जलाई जाती,डटी है सदियों से चट्टान बनकर,
क्या क्या सहती आई है दुनिया पर.
किताबों किस्सों से नही बयां होती,न ही बताने से होती है वो सुपर.
सहनशील भी है,दरियादिल भी है,हर राह में निभाती हर हाल मे निभाती,हो भुखमरी या बीमारी कभी न घबराती,कांटो की डगर में चलती है बेफिक्र.
हो आग तो सीता भी है हो पानी तो गंगा भी है,शांत समंदर पे लहर भी है,तूफानों में अटल भी है.दिन रात एक है इसका,कभी न रुकता सफर.
किताबों किस्सों से नही बयां होती,न ही बताने से होती है वो सुपर.
इस जीवन की रचेता है वो,दुर्गा,काली का रूप है वो,राधा सीता सी है उसकी गाथा,असली विधाता है वो,न जाने कितने रूप है निभाती,कभी सति हो आग में है जलती,कभी बांध पीठ पर बच्चे को लक्ष्मीबाई तलवार उठाती मैदान-ए-जंग पर.
किताबों किस्सों से नहीं बयां होती न ही बताने से होती है वो सुपर।
हस हस के बेटों की फांसी है देखी,कट ते बच्चों के हार पहने है गले पर,
है सर्वशक्तिमान ये,असली गुरु असली ज्ञान है ये,दिया ऐसा हौंसला छोटे छोटे बच्चे भी हस्ते हस्ते चिनवा गए खुद को दीवारों के भीतर.
किताबों किस्सों से नही बयां होती न ही बताने से होती है वो सुपर.
न ही मजहब कोई इसका,न ही बदल कोई इसका,ममता ही सबसे ऊपर है
कभी बहन है एक विस्वास बनकर,कभी बहु है एक परिवार बनकर,कभी दादी है एक ज्ञान बनकर, कभी नानी है एक दुलार बनकर,कितने ही रंग इसके महक बिखेरती एक बेटी है गुलाब बनकर.
किताबों किस्सों से नही बयां होती न ही बताने से होती है सुपर।
हज़ारों फूलों का बाग है,चंचल मन परिंदा आज़ाद है ,न बंदिशों में रखो उड़ने दो आज़ाद होकर.
ये हक़ इसका भी है ये आसमां इसका भी है छूने दो इसे मंज़िलों का हर शहर.
घुट घुट के क्यों बांध रखा,क्यों रखे हो जंजीरों में जकड़कर,
ज़रा खुद भी रहकर देखो बंदिशों के पिंजरे में कैद,तुमको भी समझ आएगी एक औरत की अंदर की तड़प, उसके अंदर का अकेलापन,उसके उम्मीदों की डगर.
किताबों किस्सों से नही बयां होती न ही बताने से होती है सुपर.
यही भारत माँ भी है,यही शहीदों की माँ भी है सरहद पे बंदूख भी है उठाती, सच्ची अध्यापक है ये,द्रोपदी की आन भी ये,आसमां में उड़ती कल्पना की उड़ान भी ये,ये सुंदरता की मूरत मेनिका सी मनमोहिनी है,मोहब्बत की दास्तां ये,ताजमहल की नींव है,रांझे की हीर भी है किताबों किस्सों से नही बयां होती न ही बताने से होती है सुपर.
कितनी बंदिशे सहती आयी,कितनी कुरीतियों को सहती आयी,एक विधवा का ज़हर भी पीती है,कभी बांझपन के ताने,कभी मनहूस तक बता दी जाती,कभी तोड़ा जाता है इसे कभी इज्जत से खिलवाड़ होता,कभी छेड़ता है मर्द हैवान होकर.
बचपन से ही किनारे किये जाता इसे, बेटे को ही हक़ दिए जाते सभी,बेटी को न आगे बढ़ाया जाता कभी,कमजोर ये नही कमजोर तो मर्द है जो झूठी आन में देता इसको दर्द है,
कमजोर समाज के रिवाज है जो नारी के लिए अविशाप हैं.लिखने को बहुत कुछ अभी बाकी है,बस ये एक छोटा सा दर्द अमन ने बयां कर दिया,मेरे लिए नही कोई किसी से ऊपर मेरे लिए सारी नारी शक्ति है सुपर,मेरा भी आज दिल से प्रणाम है,नारी शक्ति को सलाम है।