किताबे
किताबे सच्ची मित्र होती है
सब कुछ मुझे सिखाती है
सच्ची प्रीती को निभाती है
अच्छी बात को समझाती है
सुबह को जब आँखे खोलूँ
अखवार के भावों को तौलूँ
कागज दोनों का एक ही है
बस वक्त ही बदल जाता है
जब मैं हो जाती हूँ गमगीन
किताबें खुशहाल बनाती है
विचारों के सागर में डूबोकर
मधु रस का पान कराती है
किताबें धरती लोक से उठा
परी लोक मुझे ले जाती है
दिखा कर मुझे जादू की छडी
मेरा कोमल मन हरषाती है
बुलबुले पानी के बुदबदाते है
मन में तरंगें तरंगित हो जाती
किताबें कर ह्रदय को परिष्कृत
अपनी बातें मनवा जाती है
वक्त बदल जाता है बार-बार
सच्चाई अटल अमर रहती
बदल जाने पर कवर लेवल
सच्चाई का ही भास कराती