किताबें
किताब का बदलता स्वरूप।
आधुनिकता और अपने बदलते स्वरूप से विचलित कल पुस्तक मेरे सपने में आई।
बैठ समीप मेरे मुझको फिर अपनी व्यथा सुनाई।
बोली- बहुत विस्मित विचलित अचंभित हूं
और संशय में पड़ गई हूं।
समझ नहीं आई यह बात।
पहुंचा है यह देख आघात,
घर का इंटीरियर बन गई
धीरे धीरे या बदला सब अकस्मात।
कभी पढ़ते थे दिल के करीब रखकर
मुझे कभी घुटनों में लेकर,
कभी सीधे कभी ओंधे लेटकर।
कभी बहुत रुचि से मेरे पन्नों को
अपनी उंगली से पलटा करते थे।
क्यों आज मेरा स्वरूप बदल दिया
एक कोने में तह लगाकर मेरी क्यूं
मुझको बस धूल से ढक दिया।
कभी तुम मुझे पढ़ते पढ़ते
कुर्सी पर ही सो जाते थे,
पांव लगने पर चूम के मुझको
फिर अपने शीश लगाते थे।
कभी मुझमें, पुष्प गुलाब तो
कभी मोर पंख छिपाते थे।
कभी खेला करते मुझमें
समान शब्द खोजने का खेल।
खुदको समाप्त समझूं अथवा
मेरी आधुनिक पीढ़ी का आगमन
पर एक माउस क्लिक ने है
कर दिया मुझको फेल।
अब तुम घंटों चश्मा लगाकर
मेरे नव रूप से सटे रहते हो।
कभी पढ़ते आनलाइन किताबें,
कभी गेम्स तो कभी चैटिंग, पर
परिवार से कटे रहते हो।
कहीं मेरी ही तरह परिवार को भी
भुलाने की तो नहीं हो रही तैयारी।
मुझको तो अब कलात्मक रूप में ढाला,
कभी बना दिया स्टडी टेबल तो कभी अलमारी।
पर मैं खुश हूं मुझे न सही,
मेरे बदले स्वरूप को तो पढ़ते हो।
सीखना क्रिया निरंतर रहे,चाहे
ई-बुक से ही सीखते रहो। पर
रखना याद मैं सदा तुम्हारी घनिष्ठ मित्र रहूंगी
पढ़ते रहना,मत कभी पढ़ना छोड़ना अंततः यही कहूंगी।
सूनकर व्यथा वेदना अभिव्यक्ति फिर मैंने भी कहा उससे कि-
न लगा ? से ए पुस्तक,
तू आज भी ज्ञान बढ़ाती है सबका
और देती है दिल पर दस्तक।
माना कि आधुनिक होते हैं जा रहे हम
पर यह तुम्हें पढ़ने से ही हुआ संभव।
पढ़ें ई-बुक लैपटॉप पर या मोबाइल पर,
किंतु महसूस तेरी ही गोद में करते हैं।
हां,अब हम गुलाब पुष्प और
पंख मोर का तुझमें नहीं रख पाते है।न ही
उंगली गीली कर जीभ से
पन्ना पलटने का स्वाद चख पाते हैं।
ना ही तेरे अदला बदली के बहाने
अब नये रिश्ते बन पाते हैं।
अब तो प्लास्टिक स्माइल चेहरे पर
और आई फोन पर इतराते हैं।
किंतु तेरे कद्रदान हम अभी भी हैं धन्य
लिखने के कुछ शौकीन कलमकार अनन्य,
आभासी दुनिया के मित्र समूहों में मिलकर
किस्से कविताएं बुनते हैं।
मैं भी याद करती उतना ही तुम्हें प्रिय पुस्तक
तुम्हें जितनी मैं याद आती हूं
आंखों पे चश्मा, गोद लैपटॉप सहित खुदको तेरे पन्नों
में खोया पाती हूं।
नीलम शर्मा