किताबें
होती हैं निर्जीव
किंतु अपने अंदर
अनगिन जीवन
स्पंदित करती हैं
किताबें.
ताउम्र जो
ज्ञान न हो पाए
उसे घंटों में
दे जाती हैं
किताबें.
एकांत-तन्हा
क्षणों में भी
भीड़-सा
अहसास कराती हैं
किताबें.
व्यष्टि से
समष्टि की ओर
अपकर्ष से
उत्कर्ष की ओर
हमें ले जाती हैं
किताबें.
बंद मनोग्रंथियों
को खोल
व्यापक अनंत
आयाम दिखाती हैं
किताबें.
दु:ख-अवसाद को मिटाकर
मन को हरा कर
अंधेरे में भी रोशनी दे जाती हैं
किताबें
एक बार इनसे
मुहब्बत करके तो देखो
कैसे तुम्हें
लहान (लघु) से महान बनाती हैं
किताबें.
अपने घर की
किसी आलमारी को
इन किताबों से सजाओ
फिर देखो-
आपके व्यक्तित्व-जीवन को
कैसे संवारती हैं
किताबें.
-19 जनवरी 2013
रविवार, रात्रि 1.30 बजे