किताबें
किताबें मुझे बुलाती हैंI
माता-पिता की तरह,
हर बात सिखाती हैंI
सभी के नयनों में
यह पल जाती है।
यह प्रकृति की तरह है,
जो सदा केवल
देती ही देती है I
किताबें मुझे बुलाती हैंI
किताबें मेरी सखी हैं,
ये मुझसे बतियाती हैँI
मेरी बातों पर पतियाती हैँI
एक सखी की तरह,
हमेशा दुःख दर्द बांटती हैं I
यह एकदम निश्छल हैं,
किसी को नहीं सताती हैँ I
किताबें मुझे बुलाती हैंI
किताबें माँ है, सखी हैँ, गुरु हैंI
माँ की तरह प्यार लुटाती है,
एक गुरु के समान
सच्चाई की राह दिखाती हैं I
इसका न कोई मोल है
पर बातें इसकी अनमोल हैं I
किताबें मुझे बुलाती हैं I
किताबें झगड़ती भी हैं,
करती मनुहार भी हैं
कभी ये हँसाती भी हैं,
कभी ये रुलाती भी है I
किताबें मुझे बुलाती हैं I
– मीरा ठाकुर