किताबें पूछती है
किताबें पूछती है हमको ,कितना पढ़ा मुझे।
बाज़ार से खरीदा,दिया टेबल पर सजा मुझे।
ज़रूरत होने पर, बैग में बेतरतीब ठूंसा मुझे
ला कर स्कूल से, फिर सोफे पर पटका मुझे।
मेरे ज्ञान को तो क्या, कोई न समझा मुझे।
कभी परवाह नहीं की,कभी न खोला मुझे ।
परीक्षा जब आई तो,हर तरफ तूने ढूंढा मुझे
बैड के नीचे मिली, झाड़ा,पोंछा टटोला मुझे
समझा नहीं,परखा नहीं,बस साथी बोला मुझे
मिली न जब नौकरी ,धोखा फिर तोला मुझे।
सुरिंदर कौर